दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं जो अपने आप में बेहद खौफनाक और घातक (Deadliest places on earth) हैं. इन जगहों पर लोग जाने से इसलिए डरते हैं क्योंकि उन्हें मौत ही नसीब होती है. ऐसी ही एक जगह उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) में है. ये जगह कभी जैविक हथियारों की टेस्टिंग का केंद्र (testing biological weapons) हुआ करती थी मगर अब यहां इंसान का नोम-ओ-निशान भी नहीं है. ये जगह जितनी हैरान करने वाली है, उससे ज्यादा हैरानी इस जगह के इतिहास को जानकर होगी.
साल 1920 में सोवियत संघ (Soviet Union) ने एक ऐसी जगह की खोज शुरू की जहां वो भयंकर हथियारों की टेस्टिंग कर सकें. ये हथियार मुख्य रूप से जैविक हथियार थे. इसलिए इस जगह को लोगों से दूर, वीरान जगह पर तलाशा जा रहा था. जगह मिली आज के उज्बेकिस्तान के पास, एरल समुद्र (Aral Sea) में स्थित एक टापू पर जिसका नाम है Vozrozhdeniya. ये जगह दुनिया के सबसे बड़े जैविक हथियारों के वॉरफेयर के तौर पर फेमस हुई.
I think I found the Novichok nerve gas test site in Uzbekistan at 44°4’32″N 57°37’21″E (not to be confused with Vozrozhdeniya) Looks like it might need some more cleaning. 😷 pic.twitter.com/pzRHHLGZfD
— Christian Hale (@ChristianHale84) March 13, 2018
जैविक हथियारों की टेस्टिंग का था केंद्र
यहां सोवियत संघ ने साल 1948 में जैविक हथियारों को बनाने और उसे टेस्ट करने के लिए एक खुफिया लैब की स्थापना की जिसे एरलसक-7 (Aralsk-7) कहा गया. साल 1990 में इसे बंद करने से पहले, यहां कई तरह की बीमारियों और जैविक हथियारों का प्रशिक्षण किया गया. इनमें से कई इंसानों के लिए जानलेवा भी थे. जैसे प्लेग, एंथ्रैक्स, स्मॉलपॉक्स, ब्रूसेलॉसिस, तुलारेमिया, बॉट्यूलिनम, एंनसेफिलाइटिस आदि जैसी बीमारियों की टेस्टिंग यहां की जाती थी.
बंदरों पर होता था एक्सपेरिमेंट
अम्यूजिंग प्लैनेट वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार सोवियत आर्मी के रिटायर्ड कर्नल और माइक्रोबायोलॉजिस्ट गेनाडी लेपायोशकिन Gennadi Lepyoshkin ने द न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए कई तरह की जानकारियां इस जगह के लिए दी थीं. उन्होंने बताया था कि वो यहां 18 सालों तक काम कर चुके थे. हर साल इन बीमारियों की टेस्टिंग के लिए 200-300 बंदरों पर टेस्ट किया जाता था. उन्हें पिंजड़े में ले जाते थे जहां इन बीमारियों के कीटाणु पाए जाते थे और इसके बाद उन्हें लैब में ले जाकर खून की जांच होती थी. इस एक्सपेरिमेंट ये सारे बंदर कुछ ही हफ्तों में मर जाते थे.
क्यों माना जाता है दुनिया की सबसे घातक जगह
रिपोर्ट की मानें तो समय के साथ इन सारे जैविक हथियारों को नष्ट कर दिया गया मगर एंथ्रैक्स कई सदियों तक मिट्टी में रहता है और अब वैज्ञानिकों का दावा है कि आज भी यहां की जमीन में एंथ्रैक्स भारी मात्रा में है. ऐसे में अगर कोई इंसान यहां जाता है तो उसकी मौत तय है. अब एरल सागर पूरी तरह सूख चुका है और ये जगह रेगिस्तान में तब्दील हो चुकी है. यहां का मौसम 60 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है. ऐसे में इस जगह पर किसी का भी बच पाना लगभग नामुमकिन होता है.
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